संस्कृत तथा भारतीय दर्शन आयुर्वेद चिकित्सा की अन्त: शक्ति है

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् के 56वें स्थापना दिवस पर दिल्ली में आयोजित “आयुर्वेद में अनुसंधान एवं नवाचार" (सिम्पोजियम ऑन रिसर्च एंड इनोवेशन इन आयुर्वेद ) पर एक गोष्ठी  में मुख्य अतिथि के रुप में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा संस्कृत तथा भारतीय दर्शन आयुर्वेद चिकित्सा की अन्त: शक्ति है । उन्होंने आगे कहा कि कोरोना के बाद अब आयुर्वेद के महत्त्व और प्रासंगिकता को संपूर्ण विश्व ने समझा है । 

लेकिन इस तथ्य को और व्यापक एवं प्रभावी रुप में लोक तक आयुर्वेद विद्या को पहुंचाने के लिए यह बहुत ही आवश्यकता है कि नवाचारों और बहुआयामी अनुसंधानों के माध्यम से संसार में इस कालजयी आयुर्वेद विद्या को पहुंचा कर, विश्व मानव के लिए और अधिक उपयोगी बनाया जाय । प्रो वरखेड़ी का कहना था कि इसके लिए विशेष कर युवा शोधकर्ताओं को बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी जो आयुर्वेद की मूल गवेषणात्मक शास्त्रीय परम्परा को संस्कृत और भारतीय दर्शन की विचारधाराओं से जोड़ कर इस आयुर्वेद विद्या को और अधिक संबलित कर के इसे दुनिया भर में पुनर्स्थापित करेंगे।

आयुष मंत्रालय की संयुक्त सचिव कविता गर्ग ने भी सभा को संबोधित किया। सम्मानित अतिथि प्रो. भूषण पटवर्धन (नेशनल रिसर्च प्रोफेसर -आयुष ,भारत सरकार ) ने वर्तमान परिदृश्य में आयुर्वेद में अभिनव अनुंसधान और नवाचार की आवश्यकताओं को रेखांकित किया । प्रो. वैद्य रविनारायण आचार्य ने इस संगोष्ठी के प्रयोजन और औचित्य पर प्रकाश डाला। सीसीआरएएस के उप निदेशक डॉ. श्रीकान्त ने धन्यवाद करते हुए इस कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी अतिथियों और सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया ।

इस अवसर पर केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् की विकास-यात्रा को एक रोचक लघु- फिल्म के माध्यम से झलक दिखाया गया । साथ ही आयुर्वेदसंग्रह, पाकावलिः, बायोस्टेटिक्स और इंवेस्टिगेटर ब्रोशर जैसे चार महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का भी लोकार्पण किया गया । प्रो. नारायण सिम्हा आर. एल ,को-डीन , शैक्षणिक डॉ. पवन व्यास,संयुक्त निदेशक , प्रकाशन एवं डॉ. पूरणमल गुप्ता , सीएसयू के पुस्तकालयाध्यक्ष भी केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली की ओर से उपस्थित रहें ।

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