पहली ज़रूरत है सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता के सम्भावित खतरों से सजग होना : सुरेंद्र ग्रोवर
० आशा पटेल ०
जयपुर। "सामान्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता" पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र ग्रोवर का कहना है कि मैं जैसे जैसे कृत्रिम बुद्धिमता के गहरे समुद्र में गोते लगा रहा हूँ तो मुझे कृत्रिम बुद्धिमता के नए नए रूप और प्रकार नज़र आ रहे हैं.. इनमें से एक है “सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता.” अब आप कहोगे कि इस दौर में प्रचलित कृत्रिम बुद्धिमता सामान्य नहीं तो और क्या है? नहीं, यह सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता नहीं है बल्कि इसे नैरो यानि संकीर्ण कृत्रिम बुद्धिमता के रूप में देखा जाता है जो अपने शैशवकाल में है और यह सीमित दायरे में काम करने में सक्षम है. किन्तु जैसे जैसे कृत्रिम बुद्धिमता का डेटा बढ़ता जाएगा वैसे वैसे इसके नए नए रूप सामने आते रहेंगे.
ग्रोवर कहते हैं मैं किसी को भी संभावित खतरों से डराना नहीं चाहता बल्कि समय रहते चेताना चाहता हूँ कि कृत्रिम बुद्धिमता का सकारात्मक उपयोग इसे मानवता के जीवनस्तर को ऊँचाइयों पर पहुँचाने में सहायक होगा वहीं आपराधिक प्रवृत्ति और गलत हाथों में होने के चलते यह एक शैतान की तरह सामने आ सकती है. और उस समय इस पर अंकुश लगाने के लिए यदि पहले से तैयारी नहीं की गई तो जो परिणाम सामने आएंगे वे मानवता के पक्ष में तो कत्तई नहीं होंगे. उनका मानना है कि एक बात यह भी ध्यान रखें कि जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया के पहले नम्बर पर काबिज होने से कृत्रिम बुद्धिमता के सम्भावित खतरों का सबसे बड़ा शिकार हो सकता है..
ग्रोवर कहते हैं कि मेरा फ़र्ज़ है ऐसी हर जानकारी आपके सामने रख दूं लेकिन इसके साथ ही अगली जिम्मेदारी आप सबके कन्धों पर सवार हो जाती है.मैं यह भी नहीं भूलता कि सत्ता के लालची स्वभाव ने देश के आम नागरिकों को धर्म की आड़ लेकर अपनी राजनैतिक कठपुतली बना रखा है ,लेकिन यह कोई स्थाई दौर नहीं रहने वाला. सत्ताधारी न जाने कब इस खतरे को भांपकर कोई कदम उठाने के लिए सोचेंगे लेकिन हम आम लोगों को तो चैतन्य होना ही होगा.
जयपुर। "सामान्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता" पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र ग्रोवर का कहना है कि मैं जैसे जैसे कृत्रिम बुद्धिमता के गहरे समुद्र में गोते लगा रहा हूँ तो मुझे कृत्रिम बुद्धिमता के नए नए रूप और प्रकार नज़र आ रहे हैं.. इनमें से एक है “सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता.” अब आप कहोगे कि इस दौर में प्रचलित कृत्रिम बुद्धिमता सामान्य नहीं तो और क्या है? नहीं, यह सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता नहीं है बल्कि इसे नैरो यानि संकीर्ण कृत्रिम बुद्धिमता के रूप में देखा जाता है जो अपने शैशवकाल में है और यह सीमित दायरे में काम करने में सक्षम है. किन्तु जैसे जैसे कृत्रिम बुद्धिमता का डेटा बढ़ता जाएगा वैसे वैसे इसके नए नए रूप सामने आते रहेंगे.
इनके कुछ रूप स्ट्रॉन्ग कृत्रिम बुद्धिमता, सुपर इंटेलिजेंस और सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता बतौर देखे जा रहे हैं. इन प्रकारों में “सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता” के बारे में विशेषज्ञों की राय है कि यह मानव मस्तिष्क से हज़ारों गुना ज़्यादा तेज़ी से सोचते हुए निर्णय लेने में सक्षम होगी. चूँकि कृत्रिम बुद्धिमता में पारदर्शिता का अभाव है तो मनुष्य को यह पता नहीं चलता कि कृत्रिम बुद्धिमता ने कोई निर्णय लिया तो किस आधार पर और क्या सोचते हुए वह निर्णय लिया. तो आप उस निर्णय को बदल कैसे सकते हो ?ग्रोवर का कहना है हर साल कहीं कोई अपील भी नहीं कर सकते. ऐसे में “सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता” विश्वयुद्ध तक करवा सकती है. चूँकि निकट भविष्य में सामान्य कृत्रिम बुद्धिमता का पदार्पण हो सकता है और तब तक हम अधिकांश कामों को कृत्रिम बुद्धिमता के हवाले कर चुके होंगे.
यह प्रक्रिया हम मोबाइल हैंड सेट्स को AI क्षमता से परिपूर्ण करने से शुरू कर चुके हैं जो अगले दशक तक हर हाथ में मौजूद होंगे. इन AI युक्त मोबाइल उपकरणों का उपयोग सकारात्मक कार्यों और मानवता की सहायता किये जाने के अलावा गलत हाथों में जाने से आपराधिक में भी तो हो सकता है. ग्रोवर अपनी A I पर शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक का हवाला देते हुए बताते हैं कि चूंकि कृत्रिम बुद्धिमता डेटा पर आधारित तकनीक है और जिनके हाथ में भी स्मार्ट फोन हैं, क्या वे सिर्फ शरीफ लोग हैं? सब जानते हैं कि इस दुनिया में शराफत दम तोड़ने के कगार पर खड़ी मानवता के पतन को देख ज़ार ज़ार रो रही है.
जिसे देखो वह आसान रास्तों पर चल जल्द से जल्द बहुत सारा धन एकत्र करना चाहता है भले ही उसे गुनाह ही क्यों न करने पड़ें. जब अपराधी व्यक्ति के हाथों में स्मार्ट फोन है तो उसमें मौजूद AI क्या सिखा रही है ?
याद रखो कि यह ऐसी मशीन है जो हर वक़्त सीखने में लगी है और उसका सीखना किसी कोर्स का मोहताज नहीं है, बल्कि वह इंसानों से ही सीख रही है. इस तकनीक के पास कोई भावना भी न होने के कारण वह अच्छे बुरे में कोई भेदभाव किये बिना सबकुछ सीखती जाएगी जो आगे चलकर भयावह परिणाम भी दे सकती है.
याद रखो कि यह ऐसी मशीन है जो हर वक़्त सीखने में लगी है और उसका सीखना किसी कोर्स का मोहताज नहीं है, बल्कि वह इंसानों से ही सीख रही है. इस तकनीक के पास कोई भावना भी न होने के कारण वह अच्छे बुरे में कोई भेदभाव किये बिना सबकुछ सीखती जाएगी जो आगे चलकर भयावह परिणाम भी दे सकती है.
ग्रोवर कहते हैं मैं किसी को भी संभावित खतरों से डराना नहीं चाहता बल्कि समय रहते चेताना चाहता हूँ कि कृत्रिम बुद्धिमता का सकारात्मक उपयोग इसे मानवता के जीवनस्तर को ऊँचाइयों पर पहुँचाने में सहायक होगा वहीं आपराधिक प्रवृत्ति और गलत हाथों में होने के चलते यह एक शैतान की तरह सामने आ सकती है. और उस समय इस पर अंकुश लगाने के लिए यदि पहले से तैयारी नहीं की गई तो जो परिणाम सामने आएंगे वे मानवता के पक्ष में तो कत्तई नहीं होंगे. उनका मानना है कि एक बात यह भी ध्यान रखें कि जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया के पहले नम्बर पर काबिज होने से कृत्रिम बुद्धिमता के सम्भावित खतरों का सबसे बड़ा शिकार हो सकता है..
ग्रोवर कहते हैं कि मेरा फ़र्ज़ है ऐसी हर जानकारी आपके सामने रख दूं लेकिन इसके साथ ही अगली जिम्मेदारी आप सबके कन्धों पर सवार हो जाती है.मैं यह भी नहीं भूलता कि सत्ता के लालची स्वभाव ने देश के आम नागरिकों को धर्म की आड़ लेकर अपनी राजनैतिक कठपुतली बना रखा है ,लेकिन यह कोई स्थाई दौर नहीं रहने वाला. सत्ताधारी न जाने कब इस खतरे को भांपकर कोई कदम उठाने के लिए सोचेंगे लेकिन हम आम लोगों को तो चैतन्य होना ही होगा.
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