द रघु दीक्षित प्रोजेक्‍ट की दमदार प्रस्‍तुति के साथ हुआ हार्वेस्‍ट का समापन

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्‍ली : दिल्‍ली के भारत मंडपम में पाँच दिन के सांस्‍कृतिक उत्‍सव हार्वेस्‍ट: रिदम्‍स ऑफ द अर्थ का समापन हुआ। इसकी थीम थी ‘ग्रामीण भारत को आगे ले जाना’। फेस्टिवल में वाराणसी के पाणिनी कन्‍या महाविद्यालय द्वारा वेदिक मंत्रोच्‍चार, राजस्‍थान की मांगनियार परंपरा, कुचीपुड़ी और कथक प्रस्‍तुतियों ने एक जीवंत सांस्‍कृतिक यात्रा के लिये वातावरण बनाया। 
 कश्‍मीर का लोक एवं सूफी संगीत, मणिपुर का पुंग चोलोम, ओडिसी नृत्‍य, केरल के मंदिरों के कीर्तन और पश्चिम बंगाल के बाउल संगीत की आत्मिक ध्‍वनियाँ। उत्‍सव में पंजाबी हिट्स का जलवा भी रहा, जैसे कि फरीदकोट का जेहदा नशा और लैला तथा द रघु दीक्षित प्रोजेक्‍ट का मैसूर से आई और शक्‍करपारी।

 लेह-लद्दाख के ग्‍योटो मॉन्‍क्‍स की बुद्धिस्‍ट कीर्तन वाली प्रस्‍तुति बेजोड़ थी। इसके बाद गुजरात के कनाइया डांडिया ग्रुप का गरबा और डांडिया रास तथा अन्‍वेसा महंता एण्‍ड ग्रुप द्वारा असम का जीवंत बिहू नृत्‍य सामने आया। हर प्रस्‍तुति ने भारत की सांस्‍कृतिक जड़ों के भाव का प्रतिनिधित्‍व किया और शहरी दर्शकों को देश की उत्‍कृष्‍ट धरोहर से जोड़ा। सहर के संस्‍थापक संजीव भार्गव ने कहा, ‘’हम बड़े-बड़े शहरों और गगनचुंबी इमारतों में रहते हैं, लेकिन अक्‍सर अपने गांवों की जड़ें भूल जाते हैं। 

हार्वेस्‍ट लोगों को भारत के गांवों से जोड़ने के‍ लिये हमारी एक कोशिश थी। पाँच दिनों तक दर्शकों ने उन जीवंत ध्‍वनियों, कहानियों और परंपराओं का अनुभव लिया, जो ग्रामीण जीवन को परिभाषित करती हैं। किसानों के उत्‍थान और ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को सहयोग देने में नाबार्ड के उल्‍लेखनीय काम से प्रेरित होकर हमारा मकसद भारत के असली उत्‍साह को हार्वेस्‍ट के माध्‍यम से शहरी लोगों के करीब ले जाना था।’’

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