सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट असलम अहमद ने यूसीसी और रईस अहमद ने वक़्फ़ बिल का किया विरोध।
० संवाददाता द्वारा ०
नई दिल्ली/ भारत जैसे विविधता वाले देश को जब आज़ादी मिली तो संविधान निर्माताओं ने सभी धर्मों और संस्कृतियों को ध्यान में रखकर देश का दस्तूर तैयार किया और इसे सुचारू रूप से लागू करने के लिए क़ायदे क़ानूनों का निर्माण किया। परंतु कुछ समय से देश में सरकारे संविधान और इसकी आत्मा के विरुद्ध क़ानून बनाकर देश में रह रहे विभिन्न संस्कृतियों के नगरिकों के संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना कर रही हैं। ग़ौरतलब है कि चाहे वो शादी ब्याह के मामलात हों या तलाक़ व संपत्ति बटवारे के निजी अधिकार या फिर वक़्फ़ जायदादों से संबंधित क़ानून सभी मामलों में वर्तमान सरकारें संवैधानिक मूल भावना को नज़रअंदाज़ करते हुए क़ानून थोपने का काम कर रहीं हैं।
वक़्फ़ बिल पर मशहूर टीवी पैनलिस्ट और एडवोकेट रईस अहमद ने अपने बयान में कहा कि देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से संबंधित वक़्फ़ संपत्तियों के रखरखाव के लिए बनाया गया वक़्फ़ क़ानून 1995 पर भी सरकार की नियत ठीक नहीं है। जहां सरकार मीडिया और समाज में वक़्फ़ के खिलाफ एक झूंठा माहौल खड़ा कर वक़्फ़ सम्पत्तियों को हड़पने पर आमादा है। जिसके लिए पिछले साल केंद्र सरकार के ज़रिए आनन फानन में वक़्फ़ बिल संसद में लाया गया था। परंतु लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले विद्वानो व संसद में विपक्ष के पुरज़ोर विरोध के चलते इसे सर्वदलीय संसदीय समिति(जेपीसी) के हवाले किया गया।
नई दिल्ली/ भारत जैसे विविधता वाले देश को जब आज़ादी मिली तो संविधान निर्माताओं ने सभी धर्मों और संस्कृतियों को ध्यान में रखकर देश का दस्तूर तैयार किया और इसे सुचारू रूप से लागू करने के लिए क़ायदे क़ानूनों का निर्माण किया। परंतु कुछ समय से देश में सरकारे संविधान और इसकी आत्मा के विरुद्ध क़ानून बनाकर देश में रह रहे विभिन्न संस्कृतियों के नगरिकों के संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना कर रही हैं। ग़ौरतलब है कि चाहे वो शादी ब्याह के मामलात हों या तलाक़ व संपत्ति बटवारे के निजी अधिकार या फिर वक़्फ़ जायदादों से संबंधित क़ानून सभी मामलों में वर्तमान सरकारें संवैधानिक मूल भावना को नज़रअंदाज़ करते हुए क़ानून थोपने का काम कर रहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रेकॉर्ड असलम अहमद ने अपने मीडिया बयान में कहा कि इससे देश के लोकतांत्रिक तानेबाने में एक बैचेनी देखने को मिल रही है। यदि निजि अधिकारों में सरकारें इतना ज़्यादा हस्तक्षेप करेंगी तो देश के दलित/आदिवासी/पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदायों का विश्वास संविधान व न्याय व्यवस्था से उठने लगेगा। जो बेहद गंभीर मुद्दा है। उन्होंने कहा कि जहां सरकार ने शादी के बिना लिवइन में रहने वाले लड़का लड़की के रेजिस्ट्रेशन को अनिवार्य किया।
वहीं शादी और तलाक़ के रेजिस्ट्रेशन न करने पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगा दिया। जहां सरकार एक तरफ व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा को बातें करती हैं, वहीं यूसीसी में समुदायों के सांस्कृतिक अधिकारों को नज़रअंदाज़ कर रही है। लिहाज़ा सरकार को चाहिए कि वो तुरंत इसे वापस ले और इसपर पुनर्विचार करे। इसी के मद्देनज़र हमने यूसीसी के दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए एक जागरूकता वीडियो जारी किया है जिसे देशभर में काफी पसंद किया जा रहा है।
वक़्फ़ बिल पर मशहूर टीवी पैनलिस्ट और एडवोकेट रईस अहमद ने अपने बयान में कहा कि देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से संबंधित वक़्फ़ संपत्तियों के रखरखाव के लिए बनाया गया वक़्फ़ क़ानून 1995 पर भी सरकार की नियत ठीक नहीं है। जहां सरकार मीडिया और समाज में वक़्फ़ के खिलाफ एक झूंठा माहौल खड़ा कर वक़्फ़ सम्पत्तियों को हड़पने पर आमादा है। जिसके लिए पिछले साल केंद्र सरकार के ज़रिए आनन फानन में वक़्फ़ बिल संसद में लाया गया था। परंतु लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले विद्वानो व संसद में विपक्ष के पुरज़ोर विरोध के चलते इसे सर्वदलीय संसदीय समिति(जेपीसी) के हवाले किया गया।
परंतु जेपीसी ने देश के विभिन विद्वानों, संगठनों, वक़्फ़ संस्थानों और अपने सदस्यों तक के तमाम सुझावों व विरोधों को नज़रअंदाज़ करते हुये उसे पास कर संसद में पेश करने के लिए भेज दिया। जिससे देशभर में समस्त अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ-साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखने वाले समुदायों में भी बेचेनी देखने को मिल रही है। देश के संविधान के विरुद्ध किसी भी क़ानून को देश के नागरिक स्वीकार करने के लिए राज़ी नहीं हैं। लिहाज़ा सरकार तुरन्त इसपर पुनर्विचार कर वापस ले। हम अपील करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट इसमें स्वत्: संज्ञान लेते हुये इनपर तुरन्त रोक लगाए।
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