संस्कृत के प्रयोग से ही भारतीय कला तथा संस्कृति सुरक्षित हो निखर पाएगा
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली/ देश भर में अवस्थित सीएसयू के सभी परिसरों के निदेशक तथा अन्य अधिकारियों को लेकर एक तीन दिवसीय डारेक्टर मीट का आयोजन किया गया । इसका लक्ष्य सीएसयू के निदेशकों तथा अधिकारियों के प्राशासनिक गुणवत्ता को और अधिक उन्नत बनाना है , ताकि संस्कृत को विकसित भारत के निर्माण में अधिकाधिक रुप में प्रयोग में लगाया जा सके । इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुए भारतीय भाषा के अध्यक्ष ,पद्मश्री चमू कृष्ण शास्त्री ने एन.ई.पी .में संस्कृत के महत्त्व बताते हुए अपने व्याख्यान में अनुवाद प्रौद्योगिकी में सरल मानक संस्कृत हेतु व्युत्पन्न संस्कृत विशेषज्ञों की आवश्यकता की बात कही । एन.ई.पी.में जो संस्कृत को केन्द्र में रख कर भारतीय भाषाओं को बहुत ही महत्त्व दिया गया । उस दृष्टि से संस्कृत के लिए एक नये अवसर तो मिला है । लेकिन संस्कृत समाज पर उत्तरदायित्व भी बढ़ गया है । पद्मश्री शास्त्री का मानना था कि अनुवाद प्रौद्योगिकी में संस्कृत का महत्त्वपूर्ण योगदान इसलिए भी होगा कि संस्कृत के समुचित शब्दावली के प्रयोग से ही भारतीय कला तथा संस्कृति आदि का मूल तथा समन्वित स्वरूप सु