नकारात्मक परिवेश के मध्य जीवित रहने का अदम्य साहस मनुष्य रखता है
० डॉ. शेख अब्दुल वहाब ० हमारे चारों ओर नकारात्मकता व्याप्त है। परिवार से लेकर आसपास, कार्य क्षेत्र में, अखबारों में , समारोह और संगोष्ठियों में सर्वत्र आज निषेधात्मक भावना प्रसारित और मन में भरी हुई है। जिसके पास धन है वह भी नकारात्मकता से ग्रस्त है। जिसके पास धन नहीं है गरीब - मजदूर है वह भी इससे पीड़ित है। जब यह भाव या मनोविकार लिए मनुष्य चलता है तो उसे अपने और मित्रों के सुझाव अप्रिय लगते हैं। सफलता पाने की संभावनाओं पर मनुष्य शंकित होने लगता है। भविष्य में सब ठीक होगा अथवा यह कार्य अवश्य सफल होगा ... इन बातों में उसे कम विश्वास और संशय अधिक होता है। संशय इस निषेधात्मक भावना के मूल में निहित है। प्राप्त असफलताओं के कारण मनुष्य अपनी संभावित सफलता में विश्वास खो बैठता है । जब नकारात्मकता हो तब अच्छाई भी बुराई के रूप में और संभावनाएं असफलताओं के रूप में दिखने लगती हैं। क्योंकि उसके मन में पहले ही से तय हुआ होता है कि यह काम मुझसे नहीं होगा। या यह काम करने से निराश होना पड़ेगा। जब आसपास के लोग परिवेश नकारात्मक हों तो हमारा मन भी स्वाभाविक रूप से इस अप्रिय प्रवृत्ति का श...